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श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय | Srinivasa Ramanujan Biography

श्री निवास रामानुजन एक महान भारतीय गणितज्ञ है। जिन्होंने गणितीय विश्लेषण, संख्याओं के सिद्धांत, अनंत श्रृंखला और निरंतर टुकड़ों में बहुत योगदान दिया है।उन्होंने न केवल गणित में अद्भुत प्रतिभाओं का आविष्कार किया, बल्कि उन्होंने अपनी प्रतिभा और जुनून के लिए भारत में अभूतपूर्व गर्व भी किया।
श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय | Srinivasa Ramanujan Biography, Education, Work Details in Hindi


रामानुजन का जन्म और परिवार (Ramanujan Birth and Family)

रामानुजन का जन्म 22 दिसम्बर 1887 में तमिलनाडु के इरोड में एक रूढ़िवादी अयंगर ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्रीनिवास अय्यंगर था जो कि स्थानीय कपडे की दुकान में मुनीम थे. इनकी माता जी का नाम कोमल तम्मल था. जो एक गृहिणी महिला थी. जब रामानुजन एक वर्ष के हुए थे तभी उनका परिवार कुम्भकोणम में आकर बस गया. 22 वर्ष की उम्र में रामानुजन का विवाह उनसे 10 साल छोटी जानकी से हुआ.

रामानुजन की शिक्षा (Ramanujan Education)

11 साल की उम्र में, रामानुजन ने अविश्वसनीय प्रतिभा के लक्षण दिखाना शुरू किया। 12 साल की उम्र में, उन्होंने त्रिकोणमिति में महारत हासिल की और बिना किसी मदद के अकेले कई प्रमेयों को विकसित किया।

गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन अपने छोटे जीवन के दौरान, रामानुजन ने लगभग 3,900 परिणामों (मुख्य रूप से पहचान और समीकरण) को स्वतंत्र रूप से संकलित किया। कई पूरी तरह से उपन्यास थे; उनके मूल और अपरंपरागत परिणाम, जैसे कि रामानुजन प्राइम, रामानुजन थीटा फंक्शन, स्प्लिट थ्योरी और फेक थीटा फंक्शंस ने काम के नए क्षेत्रों को खोल दिया है और कई अन्य शोधों को प्रेरित किया है।

रामानुजन का गणित में योगदान 

वे बचपन की विलक्षण प्रतिभाएँ थीं। उन्होंने अपने दम पर गणित सीखा और जीवन भर 3,884 गणितीय प्रमेयों का विकास किया। इनमें से अधिकांश प्रमेय सही साबित हुए हैं। इसने गणित के सहज ज्ञान और बीजीय रचना की अनूठी प्रतिभा पर कई मौलिक और अपरंपरागत परिणाम प्रदान किए हैं
  •  1911 में, रामानुजन ने इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी की पत्रिका में अपना पहला लेख प्रकाशित किया। रामानुजन की प्रतिभा को धीरे-धीरे पहचाना गया  
  • 1913 में उन्होंने ब्रिटिश गणितज्ञ गॉडफ्रे एच को प्राप्त किया। उन्होंने हार्डी के साथ एक पत्राचार शुरू किया, जिसके लिए उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से एक विशेष छात्रवृत्ति और ट्रिनिटी स्कूल कैंब्रिज से छात्रवृत्ति प्राप्त की। 
  • रामानुजन 1914 में इंग्लैंड गए, जहाँ हार्डी ने उन्हें पढ़ाया और शोध में उनका सहयोग किया। उन्होंने अपने रीमैन श्रृंखला के कार्यात्मक समीकरणों, दीर्घवृत्तीय अभिन्नताओं, हाइपरजोमेट्रिक श्रृंखला, जेटा कार्यों और विचलन की श्रृंखला के अपने सिद्धांत पर काम किया है।
  • रामानुजन ने हार्डी और लिटिलवुड की मदद से कैम्ब्रिज में लगभग पांच साल बिताए और अपने कुछ निष्कर्ष प्रकाशित किए।
 
उपाधि (Degree)
Srinivasa Ramanujan Biography
रामानुजन ने अत्यधिक एकीकृत नंबरों में अपने काम के लिए 1 मार्च, 1916 को बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री प्राप्त की (इस उपाधि को बाद में पीएचडी नाम दिया गया), जिसका पहला भाग लंदन मैथेमेटिकल सोसायटी की कार्यवाही में एक लेख के रूप में प्रकाशित हुआ था।
  • राष्ट्रीय गणित दिवस: रामानुजन जन्म की 125 वीं वर्षगांठ के अवसर पर, भारत सरकार ने घोषणा की कि प्रत्येक वर्ष के 22 दिसंबर को National Mathematics Day के रूप में मनाया जाएगा। 
  • भारतीय प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने भी घोषणा की कि 2012 को राष्ट्रीय गणित वर्ष (National Mathematics Day) के रूप में मनाया जाएगा।
रामानुजन की मृत्यु ( Death of Ramanujan)
26 अप्रैल1920 के प्रातः काल में वे अचेत हो गए और दोपहर होते होते उन्होने प्राण त्याग दिए। इस समय रामानुजन की आयु मात्र 33 वर्ष थी। इनका असमय निधन गणित जगत के लिए अपूरणीय क्षति था। पूरे देश विदेश में जिसने भी रामानुजन की मृत्यु का समाचार सुना वहीं स्तब्ध हो गया।

Question & Answer
श्री निवास जी का पूरा नाम क्या हैं 
श्री निवास जी का पूरा नाम श्रीनिवास अयंगर रामानुजन् हैं
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चार्ल्स-मिशेल बधिरों के जनक को समर्पित है | charles michel is dedicated to the father of the deaf.

चार्ल्स-मिशेल डुलिपी के 360 वें जन्मदिवस पर गूगल ने उनके सम्मान में डूडल बनाया हैं उन्होंने इशारों में बातचीत के महत्व को समझा और बधिरों (कान से न सुनने बालो) लोगों के लिए अलग से वर्णमाला बना दी। उनका मानना था कि आम लोग जो बात कानों से सीखते या समझते हैं। बधिरों लोगों को अपनी आंखों से सीखना चाहिए।
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गूगल ने आज के डूडल को Charles Michel de l'épée के नाम किया है। इन्हें उन लोगों को सुन ना सकने वाले लोगों का मसीहा कहा जाता है। Charles Michèle नें ही सांकेतिक वर्णमाला के जनक थे। जिनका ये अविष्कार बधिर लोगों के लिए वरदान बन गयाा। इन चिन्ह प्रणाली या इशारों वाली भाषा में इतनी क्षमता होती है कि हम अपनी पूरी बात किसी ना सुन पाने वाले से कह सकते हैं। चार्ल्स के 306वें बर्थडे पर गूगल ने डूडल बनाया है। 

फ्रांस वार्सलिन में हुआ था जन्म

चार्ल्स मिशेल का जन्म 24 नवंबर 1712 को फ्रांस के वर्सालिस में हुआ था। उन्होंने हमेशा ही मानवता के लिए काम किया। उन्होंने फ्रांस में बहरें (कान से न सुनने बालो)  लोगों के लिए दुनिया का पहला स्कूल खोला और पूरा जीवन ना सुन पा लेने वाले लोगों के जीवन को सुधारने में लगा दिया।
 चार्ल्स ने ही सबसे पहली चिन्ह प्रणाली या भाषा का निर्माण किया। चार्ल्स ने बहरे लोगों के लिए जो कृत्रिम भाषा बनाई उसे फ्रांस की चिन्ह भाषा भी कहा जाता है। 

कैथोलिक पादरी के लिए थी पढ़ाई

चार्ल्स का जन्म बहुत धनी परिवार में हुआ था। इनके पिता फ्रांस के पास वास्तुकार का कार्य करते थे। चार्ल्स प्रारम्भ में कैथोलिक पादरी के लिए पढ़ाई की थी। मगर हमेशा से ही वो इंसानियत के लिए काम करना चाहते थे। बताया जाता है कि एक बार उन्होंने दो बहरी बहनों को आपस में बात करते देखा जिसके बाद उन्होंने सांकेतिक भाषा को बनाया ताकि दो ना सुन पाने वाले लोग भी बात कर सकें। 




1760 में खोला दुनिया का पहला 


बधिरों व्यक्तियों का स्कूल

चार्ल्स ने 1760 में बधिरों व्यक्तियों के लिए स्कूल खोल दिया। उन्होंने कहा, 'मैंने खुद को समर्पित कर दिया है। यह अमीरों के लिए नहीं बल्कि पूर्ण रूप से गरीबों के लिए है।' नका मानना था कि इनकी भाषा अलग होनी चाहिए और ना सुनने वालों को भी शिक्षा का पूरा मिलना चाहिए। यही कारण है कि चार्ल्स को बधिर लोगों के जनक कहा जाता है। 

उनके कामों के लिए फ्रांस की संसद ने उन्हें Benefactor of Humanity (मानवता के हितकारी) के रुप में पहचान दी। इसके अलावा फ्रांस में लोगों के मूल अधिकारों के कानून में बधिर लोगों के अधिकारों को भी शामिल किया।  

77 साल की उम्र में 23 दिसंबर 1789 को पेरिस में उनका निधन हो गया। 

उनके पिता एक धर्मशास्त्री थे जिन्होंने धर्मशास्त्र के क्षेत्र में काफी काम किया। आज का गूगल डूडल  एक एनिमेटेड डूडल है। 


Note: अगर आपके पास Charles Michel in Hindi की और Information हैं। या दी गयी जानकारी मैं कुछ गलत लगे तो तुरंत हमें कमेंट मैं लिखे हम इस अपडेट करते रहेंगे।
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इलोन मस्क का जीवन परिचय | Elon Musk of Biography in Hindi

एलोन मस्क का  जन्म 27 जून, 1971 को दक्षिण अफ़्रीका के प्रिटोरिया में हुआ था  Elon Musk एक व्यापारी, निवेशक, इंजीनियर, और आविष्कारक हैं उनके पिता एरोल मस्क एक इंजीनियर थे |
ऐलान मस्क ने अपना बचपन दक्षिण अफ्रीका में बिताया 9 साल की उम्र, उन्हें अपना पर्सनल कंप्यूटर मिला, इससे एलोन को प्रोग्रामिंग में दिलचस्पी मिली और एलोन ने इस स्वंय सीखना  शुरू कर दिया
12 साल के उम्र, उन्होंने अपनी पहली कंप्यूटर गेम बलस्टर  ब्लास्टर बनाई जिस बचेकर उन्होंने 500 डॉलर कमाए  
 Elon Musk of Biography in Hindi
 जिस तरह एक Success फूल इंसान की ज़िन्दगी में कुछ ऐसी घटनाएँ घटती है जो भविष्य में उसके लिए मिल का पत्थर साबित होती है, ऐसे ही कुछ घटनाएँ मस्क/ Elon Musk के जीवन में भी घटी जिसके बाद उन्हें सफलता की दिशा प्राप्त हुई।


सबसे पहली  घटना थी 17 साल की उम्र में घर छोड़ने का फैसला था। प्रिटोरिया में हाईस्कूल से स्नातक होने के बाद, उन्होंने अपने माता-पिता के समर्थन के बिना घर जाने का फैसला किया और संयुक्त राज्य अमेरिका जाने का फैसला किया, लेकिन तुरंत संयुक्त राज्य अमेरिका नहीं जा सकते थे ।
1989  ने एलन / Elon Musk  अपनी मां के रिश्तेदारों के पास कनाडा चले गए, कनाडा की नागरिकता प्राप्त करने के बाद, एलन मॉन्ट्रियल गए. पैसो की कमी के कारण उन्होंने कम वेतन पर काम करना शुरू कर दिया.  19 साल की उम्र में,ओंटारियो में क्वींस यूनिवर्सिटी (Queen's University) में प्रवेश किया।

मस्क / एलन मस्क ने ओन्टारियो में दो साल तक अध्ययन किया और आखिरकार उनका सपना सच हो गया।1992 में, वह संयुक्त राज्य अमेरिका चले गए।


उसके बाद एक समय ऐसा भी आया जब एलन मस्क/ Elon Musk ने किशोर अवस्था में  डिप्रेशन  से जूझना शुरू कर दिया. तब उन्होंने दार्शनिक और धार्मिक साहित्य को सक्रिय रूप से समझना शुरू कर दिया। लेकिन सबसे मूल्यवान सबक उन्होंने डगलस एडम्स की किताब द हिचहाइकर गाइड टू दी गैलेक्सी से सीखा।
रहस्यवादी ने सबसे कठिन वास्तविक समस्याओं के साथ अपनी स्थिति सीखी और महसूस किया कि वह दिन था जब उसने इसे करना शुरू किया था, और हर किसी ने उसे उसके लिए आसान बना दिया।
मस्क ने सीखा कि सबसे मुश्किल चीज सही सवालों के साथ अपने आपको पेश करना है  और जिस दिन उसने ऐसा करना शुरू किया, बाकी सब उन्हें आसानी से प्राप्त होने लगा.

जब मैं कॉलेज में था, मैं उन चीजों में शामिल होना चाहता था जो दुनिया को बदल सके  – एलोन मस्क

इलोन मस्क के 30 बेस्ट इंस्पायरिंग थॉट्स
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BTW बिट्टू टिक्की वाला के सतीराम यादव युवा कारोबारियों के लिए एक प्रेरणास्रोत और मिसाल हैं

दिल्ली के पीतमपुरा में चाट, टिकिया के एक ठेले से शुरुआत करके बिट्टू टिक्की वाला अब BTW नाम का Brand बन चुका है. आज Delhi NCR क्षेत्र में BTW के 14 से अधिक रेस्टोरेंट्स और स्टोर हैं. उत्तर प्रदेश के अयोध्या शहर में एक ट्यूटर सतीराम यादव कैसे इस Business में आये और इस मुकाम पर पहुंचे, आइये जानते हैं:
BTW बिट्टू टिक्की वाला के सतीराम यादव युवा कारोबारियों के लिए एक प्रेरणास्रोत और मिसाल हैं | Satiram Yadav of Bittu Tikki Wala is an inspiration and example for young businessmen:

अयोध्या शहर में गरीब बच्चों को Tuition देने वाले सतीराम यादव ‘मास्टरजी’ के नाम से प्रसिद्ध थे और लोग उनका सम्मान करते थे. अपना बिज़नस शुरू करने और कुछ बड़ा करने की उम्मीद लेकर सतीराम दिल्ली आये. सतीराम किसी बिज़नस फैमिली से नहीं थे, पर वो आत्मविश्वास और हिम्मत से भरपूर थे.

बीटीडब्लू का इतिहास लोकप्रिय रूप से "बिट्टू टिककीवाला" के रूप में जाना जाता है, यह बहुत ही रोचक और प्रेरक है।

प्रारंभ में उत्तर भारतीय सड़क व्यंजनों जैसे चाट, भल्ला, पापरी और टिककी को बेचने का विचार शुरू किया गया था और वह उन्हें जा रहा था। उनके कौशल तेज और गहरे मारा। उन्हें अब एक वफादार सहायक हाथ की आवश्यकता थी, इसलिए मास्टरजी ने अपने भतीजे श्री आर के यादव के साथ अपने व्यापार का विस्तार करने का फैसला किया

जिन्होंने सफलता की यात्रा में भी प्रवेश किया और साथ में चले गए। जीवन, समाज, वर्ग, धर्म, लिंग और जातीयता के सभी क्षेत्रों के लोग अपने मुंह से पानी के उत्पादों को पसंद करते हैं और प्रशंसा करते हैं। अपने समर्पण, ईमानदारी और खुद और उनके टीम प्रबंधन कौशल में अत्यधिक विश्वास ने उन्हें हर तरह से प्रेरित किया।

उनके कड़ी मेहनत और ईमानदारी ने कई तरह के दिमागी लोगों को आकर्षित किया जिन्होंने अपने व्यापार उद्यम को आशीर्वाद दिया। उनका कारोबार उछाल और सीमाओं में बढ़ गया। अब, अपने उत्पादों को मोबाइल हॉकर के रूप में बेचने के बजाय, उन्हें अपना व्यवसाय स्थापित करने के लिए एक दुकान मिली। उन्होंने 1 99 1 में रानी बाग बाजार में अपनी पहली दुकान खोली।

उन्होंने अपनी ईमानदारी और सादगी के साथ लोगों का सम्मान अर्जित किया। कुछ सालों के भीतर, मास्टरजी की लोकप्रियता दूर और व्यापक हो गई। उनकी सफलता से उत्साहित उन्होंने अधिक आउटलेट खोले और नए फास्ट फूड, स्नैक्स और अब पूर्ण कैटरिंग में प्रवेश किया।

सतीराम के मन में उत्तर भारतीय Street food चाट, टिकिया, दही-भल्ले आदि की Shop खोलने आईडिया था. सतीराम यादव के सगे भांजे आर. के. यादव को टिक्की बनाने का तरीका आता था. सो सतीराम ने चाट, समोसे आदि का बिट्टू टिक्की वाला नाम से ठेला लगाना शुरू किया. लाजवाब स्वाद, बढ़िया क्वालिटी और ग्राहकों से बढिया व्यवहार की वजह से जल्द ही बिट्टू टिक्की वाला का नाम प्रसिद्ध होने लगा और लोग दूर दूर से उनकी दुकान पर आने लगे.

अपनी बढ़ती लोकप्रियता को देखकर दूरदर्शी सतीराम यादव ने BTW (Bittu Tikki Wala) ब्रांड नाम रजिस्टर्ड करवा लिया और वो रेस्टोरेंट फ्रैंचाइज़ी देने लगे. सन 1991 में उनका पहला रेस्टोरेंट दिल्ली के रानीबाग मार्किट में खुला. आज BTW के रिटेल चेन में 1200 से अधिक लोग रोजगार पा रहे हैं.

 पिछले 3 साल से BTW पैकेज्ड फ़ूड और कैटरिंग सेगमेंट में भी आ चुके हैं. BTW के नमकीन, रेडी टू ईट आइटम, मिठाइयाँ, मिनरल वाटर, गिफ्ट पैक, कुकीज़ के निर्माण के लिए सतीराम ने 50,000 स्क्वायर फीट क्षेत्रफल की एक मैन्युफैक्चरिंग यूनिट लगाई है.

दिल्ली के सुभाषनगर में BTW का शानदार मार्केटिंग ऑफिस सतीराम की सफलता का प्रतीक है. आज बिट्टू टिक्की वाला के सफलता की कहानी MBA Colleges में case-study में पढाई जाती है. सतीराम यादव युवा कारोबारियों के लिए एक प्रेरणास्रोत और मिसाल हैं. सतीराम यादव के Success की यह यात्रा कड़ी मेहनत, आत्मविश्वास और लगन की कहानी है.

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पं० दीनदयाल उपाध्‍याय का जीवन परिचय | Biography of Pandit Deen Dayal Upadhyay


पं० दीनदयाल उपाध्याय जी (Pandit Deen Dayal Upadhyay ji) एक भारतीय विचारक, अर्थशाष्त्री, समाजशाष्त्री, इतिहासकार और पत्रकार थे उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के निर्माण में महत्वपूर्ण भागीदारी निभाई थी आइये जानते हैंं Biography of Pandit Deen Dayal Upadhyay in Hindi – पं० दीनदयाल उपाध्‍याय का जीवन परिचय
पं० दीनदयाल उपाध्‍याय का जीवन परिचय |Biography of Pandit Deen Dayal Upadhyay

⇒पं० दीनदयाल उपाध्याय(Pandit Deen Dayal Upadhyay ji) का जन्म 25 सितम्बर 1912 को जयपुर जिले के धानक्या ग्राम में हुआ था इनके पिता का नाम भगवती प्रसाद उपाध्याय(Bhagwati Prasad Upadhyay) और  माता रामप्यारी (Ram Pyari)धार्मिक वृत्ति की थीं
⇒पिता रेल्वे में जलेसर रोड स्टेशन पर सहायक स्टेशन मास्टर थे  रेल की नौकरी होने के कारण उनके पिता का अधिक समय बाहर ही बीतता था। कभी-कभी छुट्टी मिलने पर ही घर आते थे
⇒3 वर्ष की मासूम उम्र में दीनदयाल पिता के प्यार से वंचित हो गये। पति की मृत्यु से माँ रामप्यारी को अपना जीवन अंधकारमय लगने लगा। वे अत्यधिक बीमार रहने लगीं। उन्हें क्षय रोग लग गया।
8 अगस्त 1924 को रामप्यारी जी का देहावसान हो गया। 7 वर्ष की कोमल अवस्था में दीनदयाल माता-पिता के प्यार से वंचित हो गये।
पढ़ाई में बचपन ही तेज दीन दयाल हाई स्कूल के लिए राजस्थान के सीकर चले गए. सीकर के महाराज ने दीन दयाल को पढ़ाई के लिए किताबें खरीदने के लिए 250 रुपये और 10 रुपये के स्कॉलरशिप की व्यवस्था की 
यहां पर दीन दयाल उपाध्याय ने नानाजी देशमुख और भाऊ जुगाड़े के साथ पूरी तरह से आरएसएस के लिए काम किया.  अपने एक रिश्तेदार के कहने पर सरकारी नौकरी की परीक्षा में दीन दयाल बैठे और परिणाम आने पर वह चयनित  लोगों की वरीयता सूची में सबसे ऊपर थे. इसके बाद वह इलाहाबाद में बीटी करने चले गए. 
इलाहाबाद में भी वह आरएसएस के लिए काम करते रहे और यहां से वह 1955 में लखीमपुर चले गए जहां पर पूरी तरह आरएसएस के लिए समर्पित हो गए.
लखनऊ में पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने राष्ट्र धर्म प्रकाशन की स्थापना की. यहां से पत्रिका राष्ट्र धर्म का प्रकाशन आरंभ किया. इसके बाद उन्होंने वर्तमान में आरएसएस का मुखपत्र पांचजन्य शुरू किया और इसके बाद स्वदेश नाम से एक पत्रिका का प्रकाशन आरंभ किया.
1950 में जब श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने नेहरू की कैबिनेट से इस्तीफा दिया. तब 21 सितंबर 1951 को पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने यूपी में भारतीय जन संघ की स्थापना की थी.

पंडित दीन दयाल उपाध्याय ने डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी(DR. Shyama Prasad Mukherjee) से मिलकर 21 अक्टूबर 1951 को जन संघ का राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया. 1968 में वह जन संघ के अध्यक्ष बने. इसके कुछ ही समय में 11 फरवरी 1968 को उनका देहांत हो गया. 
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