आर्य समाज उन्नीसवीं शताब्दी का भारतीय इतिहास और साहित्य में महत्त्वपूर्ण स्थान है। इतना व्यापक और सूक्ष्म परिवर्तन मध्ययुग में इस्लाम धर्म के सम्पर्क के फलस्वरूप भी न हुआ था। एक ओर तो भारतवर्ष उन्नीसवीं शताब्दी में एक सुदूर स्थित पाश्चात्य जाति का दास बना और दूसरी ओर पाश्चात्य ज्ञान-विज्ञान तथा वैज्ञानिक आविष्कारों से लाभ उठाकर उसने नवीन चेतना प्राप्त की और मध्ययुगीन एवं अनेक पौराणिक कुरीतियों, कुप्रथाओं तथा परम्पराओं से बद्ध जीवन का आलस्य छोड़कर स्फूर्ति प्राप्त की। आइये जानते हैं
आर्य समाज के 10 सिद्धांत हैं | 10 Principles of arya samaj
- सभी शक्ति और ज्ञान का प्रारंभिक कारण ईश्वर है।
- ईश्वर ही सर्व सत्य है, सर्व व्याप्त है, पवित्र है, सर्वज्ञ है, सर्वशक्तिमान है और सृष्टि का कारण है। केवल उसी की पूजा होनी चाहिए।
- वेद ही सच्चे ज्ञान ग्रंथ हैं।
- सत्य को ग्रहण करने और असत्य को त्यागने के लिए सदा तत्पर रहना चाहिए।
- उचित-अनुचित के विचार के बाद ही कार्य करना चाहिए।
- मनुष्य मात्र को शारीरिक, सामाजिक और आत्मिक उन्नति के लिए कार्य करना चाहिए।
- प्रत्येक के प्रति न्याय, प्रेम और उसकी योग्यता के अनुसार व्यवहार करना चाहिए।
- ज्ञान की ज्योति फैलाकर अंधकार को दूर करना चाहिए।
- केवल अपनी उन्नति से संतुष्ट न होकर दूसरों की उन्नति के लिए भी यत्न करना चाहिए।
- समाज के कल्याण और समाज की उन्नति के लिए अपने मत तथा व्यक्तिगत बातों को त्याग देना चाहिए।
इनमें से प्रथम तीन सिद्धांत धार्मिक हैं और अंतिम सात नैतिक हैं। आगे चलकर व्यवहार के स्तर पर आर्य समाज में भी विचार-भेद पैदा हो गया। एक वर्ग 'दयानंद एंग्लो वैदिक कॉलेज' की विचारधारा की ओर चला और दूसरे ने 'गुरुकुल' की राह पकड़ी। यह उल्लेखनीय है कि देश के स्वतंत्रता-संग्राम में आर्य समाज ने संस्था के रूप में तो नहीं, पर सहसंस्था के अधिकांश प्रमुख सदस्यों ने व्यक्तिगत स्तर पर महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा की।
Source : Wikipedia
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कोई नई बात नहीं है सभी कुछ सनातन धर्म में है । सभी नियम अच्छे हैं ओर सभी धर्मों के नियम भी अच्छे होते हैं परंतु लोग इन्हें माने या मानें कोई जरूरी नहीं ।
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