चौधरी चरण सिंह की जयंती और किसान दिवस के मौके पर पढ़ें उनकी पूरी कहानी | Chaudhary Charan Singh Birth Anniversary

देश की समृद्धि का रास्ता गांवों के खेतों एवं खलिहानों से होकर गुजरता है. चौधरी चरण सिंह ऐसा कहते थे. उनका कहना था कि भ्रष्टाचार की कोई सीमा नहीं है. चाहे कोई भी लीडर आ जाए, चाहे कितना ही अच्छा कार्यक्रम चलाओ, जिस देश के लोग भ्रष्ट होंगे वह देश कभी तरक्की नहीं कर सकता. 
गांव की एक ढाणी में जन्मे चौधरी चरण सिंह गांव, गरीब व किसानों के तारणहार बने. उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन गांव के गरीबों के लिए समर्पित कर दिया. इसीलिए देश के लोग मानते रहे हैं कि चौधरी चरण सिंह एक व्यक्ति नहीं, विचारधारा का नाम है.
Chaudhary Charan Singh
Chaudhary Charan Singh Birth Anniversary

स्वतंत्रता सेनानी से लेकर देश के प्रधानमंत्री तक बने चौधरी ने ही भ्रष्टाचार के खिलाफ सबसे पहले आवाज बुलंद की और आह्वान किया कि भ्रष्टाचार का अंत ही देश को आगे ले जा सकता है. वह बहुमुखी प्रतिभा के धनी और प्रगतिशील विचारधारा वाले व्यक्ति थे. 

चरण सिंह का जन्म 23 दिसंबर,1902 को गाजियाबाद जिले के नूरपुर गांव में एक जाट परिवार में हुआ था. उन्होंने स्वाधीनता आंदोलन के समय राजनीति में प्रवेश किया. उनके पिता चौधरी मीर सिंह ने अपने नैतिक मूल्य विरासत में चरण सिंह को सौंपा था. चरण सिंह के जन्म के 6 वर्ष बाद चौधरी मीर सिंह सपरिवार नूरपुर से जानी खुर्द गांव आकर बस गए थे.

आगरा विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा लेकर सन् 1928 में चौधरी चरण सिंह ने गाजियाबाद में वकालत शुरू की. वकालत जैसे व्यावसायिक पेशे में भी चौधरी चरण सिंह उन्हीं मुकदमों को स्वीकार करते थे, जिनमें मुवक्किल का पक्ष न्यायपूर्ण होता था. सन् 1929 में कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन के 'पूर्ण स्वराज्य' उद्घोष से प्रभावित होकर युवा चरण सिंह ने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया.

सन् 1930 में महात्मा गांधी के चलाए सविनय अवज्ञा आंदोलन में शामिल होकर उन्होंने नमक कानून तोड़ने को डांडी मार्च किया. आजादी के दीवाने चरण सिंह ने गाजियाबाद की सीमा पर बहने वाली हिंडन नदी पर नमक बनाया. इस कारण चरण सिंह को 6 माह कैद की सजा हुई. जेल से वापसी के बाद चरण सिंह ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वयं को पूरी तरह से स्वतंत्रता संग्राम में समर्पित कर दिया.

सन् 1940 के व्यक्तिगत सत्याग्रह में भी चरण सिंह गिरफ्तार हुए. फिर अक्टूबर, 1941 में मुक्त किए गए. 9 अगस्त, 1942 को अगस्त क्रांति के माहौल में युवा चरण सिंह ने भूमिगत होकर गुप्त क्रांतिकारी संगठन तैयार किया. मेरठ कमिश्नरी में युवक चरण सिंह ने क्रांतिकारी साथियों के साथ मिलकर ब्रितानिया हुकूमत को बार-बार चुनौती दी. मेरठ प्रशासन ने चरण सिंह को देखते ही गोली मारने का आदेश दे रखा था.

एक तरफ पुलिस चरण सिंह की टोह लेती थी, वहीं दूसरी तरफ युवक चरण सिंह जनता के बीच सभाएं करके निकल जाता था. आखिरकार पुलिस ने एक दिन चरण सिंह को गिरफ्तार कर ही लिया. राजबंदी के रूप में डेढ़ वर्ष की सजा हुई. जेल में ही चौधरी चरण सिंह की लिखित पुस्तक शिष्टाचार, भारतीय संस्कृति और समाज के शिष्टाचार के नियमों का एक बहुमूल्य दस्तावेज है.


राष्ट्रीय किसान दिवस
चौधरी चरण सिंह किसानों के नेता माने जाते रहे हैं. उनके द्वारा तैयार किया गया जमींदारी उन्मूलन विधेयक राज्य के कल्याणकारी सिद्धांत पर आधारित था. एक जुलाई, 1952 को उत्तर प्रदेश में उनके बदौलत जमींदारी प्रथा का उन्मूलन हुआ और गरीबों को अधिकार मिला.

किसानों के हित में उन्होंने 1954 में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया. कांग्रेस में उनकी छवि एक कुशल नेता के रूप में स्थापित हुई. देश की आजादी के बाद वह राष्ट्रीय स्तर के नेता तो नहीं बन सके, लेकिन राज्य विधानसभा में उनका प्रभाव स्पष्ट महसूस किया जाता था. आजादी के बाद 1952, 1962 और 1967 में हुए चुनावों में चौधरी चरण सिंह राज्य विधानसभा के लिए फिर चुने गए.

चौधरी चरण सिंह का राजनीतिक भविष्य सन् 1951 में बनना शुरू हो गया था, जब इन्हें उत्तर प्रदेश में कैबिनेट मंत्री का पद प्राप्त हुआ. उन्होंने न्याय एवं सूचना विभाग संभाला. सन् 1952 में डॉ. संपूर्णानंद के मुख्यमंत्रित्व काल में उन्हें राजस्व तथा कृषि विभाग का दायित्व मिला. वह जमीन से जुड़े नेता थे और कृषि विभाग उन्हें विशिष्ट रूप से पसंद था. चरण सिंह स्वभाव से भी कृषक थे. वह कृषक हितों के लिए अनवरत प्रयास करते रहे.

सन् 1960 में चंद्रभानु गुप्ता की सरकार में उन्हें गृह तथा कृषि मंत्रालय दिया गया. वह उत्तर प्रदेश की जनता के बीच अत्यंत लोकप्रिय थे, इसीलिए प्रदेश सरकार में योग्यता एवं अनुभव के कारण उन्हें ऊंचा मुकाम हासिल हुआ.

उत्तर प्रदेश के किसान चरण सिंह को अपना मसीहा मानने लगे थे. उन्होंने कृषकों के कल्याण के लिए काफी कार्य किए. समस्त उत्तर प्रदेश में भ्रमण करते हुए कृषकों की समस्याओं का समाधान करने का प्रयास किया. उत्तर प्रदेश के ग्रामीण इलाकों में कृषि मुख्य व्यवसाय था. कृषकों में सम्मान होने के कारण इन्हें किसी भी चुनाव में हार का मुंह नहीं देखना पड़ा. 

चरण सिंह की ईमानदाराना कोशिशों की सदैव सराहना हुई. वह लोगों के लिए एक राजनीतिज्ञ से ज्यादा सामाजिक कार्यकर्ता थे. उन्हें भाषणकला में भी महारत हासिल थी. यही कारण था कि उनकी जनसभाओं में भारी भीड़ जुटा करती थी.

चौधरी साहब 3 अप्रैल, 1967 में पहली बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे. तब उनकी निर्णायक प्रशासनिक क्षमता की धमक और जनता का उन पर भरोसा ही था कि सन् 1967 में पूरे देश दंगे होने के बावजूद उत्तर प्रदेश में कहीं पत्ता भी नहीं खड़का. 17 अप्रैल, 1968 को उन्होंने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया. मध्यावधि चुनाव में उन्होंने अच्छी सफलता मिली और दोबारा 17 फरवरी, 1970 को वह मुख्यमंत्री बने. उन्होंने अपने सिद्धांतों व मर्यादित आचरण से कभी समझौता नहीं किया.

सन् 1977 में चुनाव के बाद जब केंद्र में जनता पार्टी सत्ता में आई तो किंग मेकर जयप्रकाश नारायण के सहयोग से मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने और चरण सिंह को देश का गृहमंत्री बनाया गया. केंद्र सरकार में गृहमंत्री बने तो उन्होंने मंडल व अल्पसंख्यक आयोग की स्थापना की.

सन् 1979 में वित्तमंत्री और उपप्रधानमंत्री के रूप में चोधरी साहब ने राष्ट्रीय कृषि व ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) की स्थापना की. बाद में मोरारजी देसाई और चरण सिंह के बीच मतभेद हो गया. 28 जुलाई, 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस (यू) के सहयोग से भारत के पांचवें प्रधानमंत्री बने. चौधरी चरण सिंह का प्रधानमंत्री के रूप में कार्यकाल 28 जुलाई, 1979 से 14 जनवरी, 1980 तक रहा.

चौधरी चरण सिंह एक कुशल लेखक भी थे. उनका अंग्रेजी भाषा पर अच्छा अधिकार था. उन्होंने 'अबॉलिशन ऑफ जमींदारी', 'लिजेंड प्रोपराइटरशिप' और 'इंडियाज पोवर्टी एंड इट्स सोल्यूशंस' नामक पुस्तकों का लेखन भी किया. उनमें देश के प्रति वफादारी का भाव था.

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गांधी टोपी को कई बड़े नेताओं ने त्याग दिया था, लेकिन चौधरी चरण सिंह इसे जीवन र्पयत धारण किए रहे. देश के इतिहास में उनका नाम प्रधानमंत्री से ज्यादा एक किसान नेता के रूप में जाना जाता है. 

वर्ष 2001 में केंद्र की अटल बिहारी बाजपेयी सरकार द्वारा किसान दिवस की घोषणा की गई, जिसके लिए चौधरी चरण सिंह जयंती से अच्छा मौका नहीं था. उनके किए कार्यो को ध्यान में रखते हुए 23 दिसंबर को भारतीय किसान दिवस की घोषणा की गई. तभी से देश में प्रतिवर्ष किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है. 29 मई, 1987 को 84 वर्ष की उम्र में जनमानस का यह नेता इस दुनिया को छोड़कर चला गया.

इनपुट - आईएएनएस

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श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय | Srinivasa Ramanujan Biography

श्री निवास रामानुजन एक महान भारतीय गणितज्ञ है। जिन्होंने गणितीय विश्लेषण, संख्याओं के सिद्धांत, अनंत श्रृंखला और निरंतर टुकड़ों में बहुत योगदान दिया है।उन्होंने न केवल गणित में अद्भुत प्रतिभाओं का आविष्कार किया, बल्कि उन्होंने अपनी प्रतिभा और जुनून के लिए भारत में अभूतपूर्व गर्व भी किया।
श्रीनिवास रामानुजन का जीवन परिचय | Srinivasa Ramanujan Biography, Education, Work Details in Hindi


रामानुजन का जन्म और परिवार (Ramanujan Birth and Family)

रामानुजन का जन्म 22 दिसम्बर 1887 में तमिलनाडु के इरोड में एक रूढ़िवादी अयंगर ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम श्रीनिवास अय्यंगर था जो कि स्थानीय कपडे की दुकान में मुनीम थे. इनकी माता जी का नाम कोमल तम्मल था. जो एक गृहिणी महिला थी. जब रामानुजन एक वर्ष के हुए थे तभी उनका परिवार कुम्भकोणम में आकर बस गया. 22 वर्ष की उम्र में रामानुजन का विवाह उनसे 10 साल छोटी जानकी से हुआ.

रामानुजन की शिक्षा (Ramanujan Education)

11 साल की उम्र में, रामानुजन ने अविश्वसनीय प्रतिभा के लक्षण दिखाना शुरू किया। 12 साल की उम्र में, उन्होंने त्रिकोणमिति में महारत हासिल की और बिना किसी मदद के अकेले कई प्रमेयों को विकसित किया।

गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन अपने छोटे जीवन के दौरान, रामानुजन ने लगभग 3,900 परिणामों (मुख्य रूप से पहचान और समीकरण) को स्वतंत्र रूप से संकलित किया। कई पूरी तरह से उपन्यास थे; उनके मूल और अपरंपरागत परिणाम, जैसे कि रामानुजन प्राइम, रामानुजन थीटा फंक्शन, स्प्लिट थ्योरी और फेक थीटा फंक्शंस ने काम के नए क्षेत्रों को खोल दिया है और कई अन्य शोधों को प्रेरित किया है।

रामानुजन का गणित में योगदान 

वे बचपन की विलक्षण प्रतिभाएँ थीं। उन्होंने अपने दम पर गणित सीखा और जीवन भर 3,884 गणितीय प्रमेयों का विकास किया। इनमें से अधिकांश प्रमेय सही साबित हुए हैं। इसने गणित के सहज ज्ञान और बीजीय रचना की अनूठी प्रतिभा पर कई मौलिक और अपरंपरागत परिणाम प्रदान किए हैं
  •  1911 में, रामानुजन ने इंडियन मैथमेटिकल सोसायटी की पत्रिका में अपना पहला लेख प्रकाशित किया। रामानुजन की प्रतिभा को धीरे-धीरे पहचाना गया  
  • 1913 में उन्होंने ब्रिटिश गणितज्ञ गॉडफ्रे एच को प्राप्त किया। उन्होंने हार्डी के साथ एक पत्राचार शुरू किया, जिसके लिए उन्होंने मद्रास विश्वविद्यालय से एक विशेष छात्रवृत्ति और ट्रिनिटी स्कूल कैंब्रिज से छात्रवृत्ति प्राप्त की। 
  • रामानुजन 1914 में इंग्लैंड गए, जहाँ हार्डी ने उन्हें पढ़ाया और शोध में उनका सहयोग किया। उन्होंने अपने रीमैन श्रृंखला के कार्यात्मक समीकरणों, दीर्घवृत्तीय अभिन्नताओं, हाइपरजोमेट्रिक श्रृंखला, जेटा कार्यों और विचलन की श्रृंखला के अपने सिद्धांत पर काम किया है।
  • रामानुजन ने हार्डी और लिटिलवुड की मदद से कैम्ब्रिज में लगभग पांच साल बिताए और अपने कुछ निष्कर्ष प्रकाशित किए।
 
उपाधि (Degree)
Srinivasa Ramanujan Biography
रामानुजन ने अत्यधिक एकीकृत नंबरों में अपने काम के लिए 1 मार्च, 1916 को बैचलर ऑफ साइंस की डिग्री प्राप्त की (इस उपाधि को बाद में पीएचडी नाम दिया गया), जिसका पहला भाग लंदन मैथेमेटिकल सोसायटी की कार्यवाही में एक लेख के रूप में प्रकाशित हुआ था।
  • राष्ट्रीय गणित दिवस: रामानुजन जन्म की 125 वीं वर्षगांठ के अवसर पर, भारत सरकार ने घोषणा की कि प्रत्येक वर्ष के 22 दिसंबर को National Mathematics Day के रूप में मनाया जाएगा। 
  • भारतीय प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह ने भी घोषणा की कि 2012 को राष्ट्रीय गणित वर्ष (National Mathematics Day) के रूप में मनाया जाएगा।
रामानुजन की मृत्यु ( Death of Ramanujan)
26 अप्रैल1920 के प्रातः काल में वे अचेत हो गए और दोपहर होते होते उन्होने प्राण त्याग दिए। इस समय रामानुजन की आयु मात्र 33 वर्ष थी। इनका असमय निधन गणित जगत के लिए अपूरणीय क्षति था। पूरे देश विदेश में जिसने भी रामानुजन की मृत्यु का समाचार सुना वहीं स्तब्ध हो गया।

Question & Answer
श्री निवास जी का पूरा नाम क्या हैं 
श्री निवास जी का पूरा नाम श्रीनिवास अयंगर रामानुजन् हैं
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