चार्ल्स-मिशेल डुलिपी के 360 वें जन्मदिवस पर गूगल ने उनके सम्मान में डूडल बनाया हैं उन्होंने इशारों में बातचीत के महत्व को समझा और बधिरों (कान से न सुनने बालो) लोगों के लिए अलग से वर्णमाला बना दी। उनका मानना था कि आम लोग जो बात कानों से सीखते या समझते हैं। बधिरों लोगों को अपनी आंखों से सीखना चाहिए।
गूगल ने आज के डूडल को Charles Michel de l'épée के नाम किया है। इन्हें उन लोगों को सुन ना सकने वाले लोगों का मसीहा कहा जाता है। Charles Michèle नें ही सांकेतिक वर्णमाला के जनक थे। जिनका ये अविष्कार बधिर लोगों के लिए वरदान बन गयाा। इन चिन्ह प्रणाली या इशारों वाली भाषा में इतनी क्षमता होती है कि हम अपनी पूरी बात किसी ना सुन पाने वाले से कह सकते हैं। चार्ल्स के 306वें बर्थडे पर गूगल ने डूडल बनाया है। फ्रांस वार्सलिन में हुआ था जन्म
चार्ल्स मिशेल का जन्म 24 नवंबर 1712 को फ्रांस के वर्सालिस में हुआ था। उन्होंने हमेशा ही मानवता के लिए काम किया। उन्होंने फ्रांस में बहरें (कान से न सुनने बालो) लोगों के लिए दुनिया का पहला स्कूल खोला और पूरा जीवन ना सुन पा लेने वाले लोगों के जीवन को सुधारने में लगा दिया।
चार्ल्स ने ही सबसे पहली चिन्ह प्रणाली या भाषा का निर्माण किया। चार्ल्स ने बहरे लोगों के लिए जो कृत्रिम भाषा बनाई उसे फ्रांस की चिन्ह भाषा भी कहा जाता है।
चार्ल्स ने ही सबसे पहली चिन्ह प्रणाली या भाषा का निर्माण किया। चार्ल्स ने बहरे लोगों के लिए जो कृत्रिम भाषा बनाई उसे फ्रांस की चिन्ह भाषा भी कहा जाता है।
कैथोलिक पादरी के लिए थी पढ़ाई
चार्ल्स का जन्म बहुत धनी परिवार में हुआ था। इनके पिता फ्रांस के पास वास्तुकार का कार्य करते थे। चार्ल्स प्रारम्भ में कैथोलिक पादरी के लिए पढ़ाई की थी। मगर हमेशा से ही वो इंसानियत के लिए काम करना चाहते थे। बताया जाता है कि एक बार उन्होंने दो बहरी बहनों को आपस में बात करते देखा जिसके बाद उन्होंने सांकेतिक भाषा को बनाया ताकि दो ना सुन पाने वाले लोग भी बात कर सकें।
1760 में खोला दुनिया का पहला
बधिरों व्यक्तियों का स्कूल
चार्ल्स ने 1760 में बधिरों व्यक्तियों के लिए स्कूल खोल दिया। उन्होंने कहा, 'मैंने खुद को समर्पित कर दिया है। यह अमीरों के लिए नहीं बल्कि पूर्ण रूप से गरीबों के लिए है।' उनका मानना था कि इनकी भाषा अलग होनी चाहिए और ना सुनने वालों को भी शिक्षा का पूरा मिलना चाहिए। यही कारण है कि चार्ल्स को बधिर लोगों के जनक कहा जाता है।
उनके कामों के लिए फ्रांस की संसद ने उन्हें Benefactor of Humanity (मानवता के हितकारी) के रुप में पहचान दी। इसके अलावा फ्रांस में लोगों के मूल अधिकारों के कानून में बधिर लोगों के अधिकारों को भी शामिल किया।
उनके कामों के लिए फ्रांस की संसद ने उन्हें Benefactor of Humanity (मानवता के हितकारी) के रुप में पहचान दी। इसके अलावा फ्रांस में लोगों के मूल अधिकारों के कानून में बधिर लोगों के अधिकारों को भी शामिल किया।
77 साल की उम्र में 23 दिसंबर 1789 को पेरिस में उनका निधन हो गया।
उनके पिता एक धर्मशास्त्री थे जिन्होंने धर्मशास्त्र के क्षेत्र में काफी काम किया। आज का गूगल डूडल एक एनिमेटेड डूडल है।
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